Class 10th Hindi Chapter 4 ( नाखून क्यों बढ़ते है ) , बिहार बोर्ड कक्षा 10 वीं हिंदी वस्तुनिष्ठ प्रश्न गोधूलि भाग 2 गद्य खंड

 Class 10th Hindi Chapter 4 (नाखून क्यों बढ़ते है) 

 बिहार बोर्ड कक्षा 10 वीं हिंदी वस्तुनिष्ठ प्रश्न गोधूलि भाग 2 गद्य खंड 

कक्षा 10वीं की हिंदी पाठ्यपुस्तक 'गोधूलि' के अध्याय 4 का शीर्षक 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' है, जिसे प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है। यह एक ललित निबंध है जो मानवीय प्रवृत्तियों और सभ्यता के विकास पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

पाठ का सारांश: एक नजर मे , 

लेखक ने इस निबंध में नाखूनों के बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य की पाशविक और मानवीय प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया है। प्राचीन काल में, जब मनुष्य जंगलों में रहता था, नाखून उसके लिए अस्त्र के रूप में कार्य करते थे, जिनसे वह अपनी रक्षा और शिकार करता था। आज, सभ्य समाज में, नाखूनों का बढ़ना पाशविक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है, और उन्हें काटना मनुष्यता की निशानी है। यह निबंध इस बात पर प्रकाश डालता है कि मनुष्य को अपनी पशुता को त्यागकर मानवीय मूल्यों को अपनाना चाहिए।

बिहार बोर्ड कक्षा 10 वीं हिंदी वस्तुनिष्ठ प्रश्न गोधूलि भाग 2 गद्य खंड 

प्रमुख बिंदु: नाखूनों का काटना: यह मनुष्यता की ओर अग्रसर होने का संकेत है

नाखूनों का बढ़ना: यह मनुष्य की सहज वृत्ति है, जो उसकी पाशविक प्रवृत्ति का प्रतीक है।
नाखूनों का काटना: यह मनुष्यता की ओर अग्रसर होने का संकेत है, जो आत्म-नियंत्रण और सभ्यता का प्रतीक है।
सफलता और चरितार्थता का अंतर: लेखक के अनुसार, बाहरी उपकरणों और अस्त्र-शस्त्रों का संग्रह सफलता का प्रतीक हो सकता है, लेकिन सच्ची चरितार्थता प्रेम, मैत्री और त्याग में निहित है।




प्रश्नोत्तर:

कक्षा 10वीं हिंदी के 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' अध्याय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर निम्नलिखित हैं:



प्रश्न 1: मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?

उत्तर: प्राचीन काल में मनुष्य पशुवत जीवन व्यतीत करता था, जहाँ नाखून आत्मरक्षा और शिकार के लिए महत्वपूर्ण अस्त्र थे। सभ्यता के विकास के साथ, मनुष्य ने आधुनिक हथियारों का उपयोग शुरू किया और नाखूनों की आवश्यकता कम हो गई। नाखूनों का बढ़ना आज भी मनुष्य की पाशविक प्रवृत्ति का प्रतीक है। उन्हें काटना इस बात का संकेत है कि मनुष्य अपनी पशुता को त्यागकर सभ्यता और स्वच्छता की ओर अग्रसर है।


प्रश्न 2: बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है?

उत्तर: बढ़ते नाखून प्रकृति की ओर से मनुष्य को यह याद दिलाते हैं कि उसके भीतर अब भी प्राचीन पाशविक प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं। यह उसे उसके अतीत की याद दिलाता है जब नाखून अस्त्र के रूप में उपयोग होते थे, और यह संकेत देता है कि पशुता की समानता अब भी मनुष्य में मौजूद है।


प्रश्न 3: लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है?

उत्तर: प्राचीन काल में, जब मनुष्य जंगली जीवन जीता था, नाखून आत्मरक्षा और शिकार के प्रमुख साधन थे। उस समय नाखून अस्त्र के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण थे। हालांकि, आधुनिक युग में, हथियारों के विकास के साथ, नाखूनों की अस्त्र के रूप में उपयोगिता समाप्त हो गई है। इसलिए, वर्तमान संदर्भ में नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना संगत नहीं है।

प्रश्न 4: नख बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं? इनका क्या अभिप्राय है?

उत्तर: नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की सहज, प्राकृतिक प्रवृत्ति है, जो उसकी पाशविकता का प्रतीक है। वहीं, नाखूनों को काटना उसकी सभ्यता और स्वच्छता की ओर बढ़ने की इच्छा को दर्शाता है। यह क्रिया इंगित करती है कि मनुष्य अपनी पशुता को त्यागकर मानवता और संस्कृति की ओर अग्रसर होना चाहता है।


प्रश्न 5: 'स्वाधीनता' शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है?

उत्तर: लेखक के अनुसार, 'स्वाधीनता' का अर्थ है अपने ही अधीन रहना, जिसमें 'स्व' का बंधन शामिल है। यह शब्द आत्म-नियंत्रण और आत्म-निर्भरता को दर्शाता है, जो मनुष्य को अपनी इच्छाओं और प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने की क्षमता प्रदान करता है।


प्रश्न 6: लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर?

उत्तर: लेखक यह प्रश्न इसलिए उठाता है क्योंकि आधुनिक समाज में हिंसा, युद्ध और विनाशकारी हथियारों का प्रचलन बढ़ रहा है, जो मनुष्य की पशुता की ओर इशारा करता है। वहीं, नैतिकता, प्रेम और मैत्री जैसे गुण मनुष्यता की ओर इंगित करते हैं। इस द्वंद्व के कारण लेखक चिंतित है कि मनुष्य किस दिशा में अग्रसर हो रहा है।


प्रश्न 7: 'सफलता' और 'चरितार्थता' शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है?

उत्तर: लेखक के अनुसार, 'सफलता' बाहरी उपकरणों और उपलब्धियों से प्राप्त की जा सकती है, जबकि 'चरितार्थता' प्रेम, मैत्री और निःस्वार्थ सेवा में निहित है। सफलता केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित हो सकती है, लेकिन चरितार्थता मनुष्य के वास्तविक उद्देश्य और आत्म-संतोष को दर्शाती है।


प्रश्न 8: मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे। प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है?

उत्तर: प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में यह आशा जगती है कि भविष्य में मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियाँ समाप्त हो जाएँगी, जैसे उसकी पूँछ झड़ गई थी। यह संकेत देता है कि मनुष्य पूर्ण रूप से सभ्यता और मानवता की ओर अग्रसर होगा, और उसकी पशुता पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

इन प्रश्नों के माध्यम से 'नाखून क्यों बढ़ते हैं' अध्याय की मुख्य अवधारणाओं और लेखक के दृष्टिकोण को समझा जा सकता है।

अधिक जानकारी के लिए, आप निम्नलिखित वीडियो देख सकते हैं:




प्रश्न: मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?

उत्तर: नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की पाशविक प्रवृत्ति का प्रतीक है। उन्हें काटना इस बात का संकेत है कि मनुष्य अपनी पशुता को त्यागकर सभ्यता और मानवीय मूल्यों को अपनाना चाहता है। 

प्रश्न: 'सफलता' और 'चरितार्थता' में क्या अंतर है?

उत्तर: सफलता बाहरी साधनों और अस्त्र-शस्त्रों के संग्रह से प्राप्त हो सकती है, जबकि चरितार्थता प्रेम, मैत्री और त्याग में निहित है। 

प्रश्न: लेखक के अनुसार, नाखूनों का बढ़ना और काटना किसका प्रतीक है?

उत्तर: नाखूनों का बढ़ना पाशविक प्रवृत्ति का प्रतीक है, जबकि उनका काटना मनुष्यता और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है। 

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Class 10th के सभी विषयों का Playlist दिया गया हैं आप इसे भी देख सकते हैं 




 


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